Skip to main content

टीकों से अब भी दूर लाखों बच्चे

इमूनाईज़ेशन का व्यापक कार्यक्रम चलाने वाले देशों में भारत एक है। यहां का टीकाकरण कार्यक्रम भौगोलिक क्षेत्र, लाभार्थियों की संख्या और टीके के इस्तेमाल के लिहाज से भी बड़ा है। हर साल लगभग 27 मिलियन नवजात बच्चों को टीका लगाया जाता है। टीके लगाने के लिए 9 मिलियन सत्र वार्षिक होते हैं। भारत टीके बनाने और निर्यात करने में भी आगे है। सभी कोशिशों के बावजूद 65 प्रतिशत बच्चों को ही अपने जीवन के पहले साल में सभी टीके मिल पाते हैं। इस स्थिति को देखते हुए टीकाकरण की मांग पैदा करने के लिए और प्रयास करने की जरूरत है। खासकर उन क्षेत्रों में जहां टीकाकरण की दर बहुत कम है। सामान्य टीकों को बच्चों तक पहुंचाने में जो कठिनाइयां आ रही हैं उन्हें दूर करना होगा ताकि नियमित टीकाकरण का मार्ग प्रशस्त हो सके। सरकार मिशन इन्द्र धनुष के द्वारा उन बच्चों को टारगेट करने की कोशिश कर रही है जिन तक सामान्य टीकाकरण अभियान द्वारा नहीं पहुंचा जा सका है। उदाहरण के तौर दूरदराज़ क्षेत्र (हार्ड रीच क्षेत्र) कन्स्ट्रक्शन साइट, ईंट के भट्टे, फैक्ट्री और कारखानों आदि में काम कर रही महिलाओं के बच्चे, मिशन इन्द्र धनुष के तहत हर महीने की सात तारीख को सात बीमारियों से बच्चों को बचाने के लिए टीके लगाए जाते है। इस अभियान के लिए 216 जिलों की पहचान की गई, जहां टीकाकरण के दो चरण पूरे हो चुके है और तीसरे चरण के टीके लगाने का काम चल रहा है। मिशन इन्द्र धनुष में सभी बच्चों को टीके लगाए जाने हैं। इनमें वे बच्चे भी शामिल हैं जिन्हें पूरे टीके नहीं लग सके हैं।


टीकाकरण वायरस और बैक्टीरिया जनित बीमारियों से बचाव का सस्ता और कारगर तरीका है। सरकार की ओर से सभी टीके प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र, उप स्वास्थ्य और आंगनवाड़ी केन्द्रों पर नि: शुल्क प्रदान किए जाते हैं। प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत सभी गर्भवती महिलाओं का बच्चे के जन्म से पहले मुफ्त परीक्षण और देखभाल का इंतजाम किया जाता है। कई राज्यों में स्मार्ट कार्ड के जरिए गर्भवती महिलाओं की निजी अस्पतालों में मुफ्त परीक्षण और उपचार की व्यवस्था भी की गई है। गर्भवती महिलाओं को प्रसव से पहले और उसके बाद टिटनस का टीका दिया जाता है। इससे जच्चा -बच्चा दोनों टिटनस से सुरक्षित रहते हैं। टिटनस का टीका सामान्य टीकों में शामिल होने से मातृत्व मृत्यु दर में कमी आई है। 30 मिलियन गर्भवती महिलाओं को हर साल टीके देने का टारगेट है।

राष्ट्रीय अनुमान के अनुसार इमूनाईज बच्चों की संख्या 61 प्रतिशत है और डी पी टी-3 का कवरेज 72 प्रतिशत। जिला स्तर पर 80 प्रतिशत से कम डी पी टी-3 कवरेज वाले जिलों की संख्या 601 में से 403 या 67 प्रतिशत यानी दो तिहाई। भारत में ऐसे बच्चों की संख्या भी बहुत अधिक है जिन्हें कोई टीका नहीं लगा है यहां तक ​​कि डी पी टी-3 भी नहीं। ऐसे बच्चे 7.4 मिलियन होने का अनुमान हैं। हमारे देश ने पोलियो से मुक्ति पाने में बड़ी सफलता हासिल की है। प्रत्येक राष्ट्रीय इमूनाईज़ेशन दिवस पर 172 मिलियन बच्चों को पोलियो की दवा पिलाई गई। पोलियो टीकाकरण अभियान में हर साल 800 मिलियन बच्चों को कवर किया गया। टीकाकरण अभियान में कोल्ड चेन यानी टीके स्टोर करने वाली जगह की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। वहाँ अलग अलग टीके अलग तापमान पर रखे जाते हैं। कुछ दो से आठ डिग्री पर तो कुछ का तापमान शून्य से नीचे रखना होता है। कोल्ड चेन से निकलने के बाद टीके का उपयोग चार घंटे के बीच करना होता है। तापमान मैन टैन रखने के लिए टीकों को रेफ्रिजरेटीड बॉक्स में रखकर एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुंचाया जाता है। देशभर में यह काम 27000 कोल्ड चेन केंद्र रहे हैं और लाखों स्वास्थ्य कार्यकर्ता इस काम में लगे हैं। यह सर्दी, गर्मी, बरसात में बिना रुके पैदल, साइकिल, मोटर साइकिल, कार और नाव से इन दूरदराज के क्षेत्रों तक टीकों को पहुंचाने का काम करते हैं जहां सामान्य परिस्थितियों में भी पहुंचना आसान नहीं है। उनकी कड़ी मेहनत के कारण ही टीकाकरण कार्यक्रम को सफलता मिल रही है।

अभी खसरा रूबेला का टीका लॉन्च हुआ है, जो नो माह से 15 साल तक के सभी बच्चों को चरणबद्ध दिया जाना है। खसरा का टीका पहले से ही सामान्य टीकाकरण में शामिल है। तीन वर्षीय अभियान में यह सुनिश्चित करने की कोशिश की गई कि खसरा की दूसरी खुराक जो 16 से 24 महीनों में दी जाती है हर बच्चे को मिल जाए। इसके लिए 135 मिलियन बच्चों को टारगेट किया गया था। इनमें 70 मिलियन वे बच्चे भी शामिल हैं जिन्हें 2012-13 में खसरा की खुराक दी जा चुकी है। कई लोग खसरा रूबेला (एम आर) टीके का विरोध यह कहकर कर रहे हैं कि जब खसरा का टीका पहले से नियमित टीकाकरण में शामिल है तो इस नए टीके की क्या जरूरत है। खसरा रूबेला वायरस से होने वाली बीमारी है। ऐसा देखा गया कि जिन को खसरा का टीका दिया जा चुका था वह भी रूबेला के शिकार हुए। रूबेला के लक्षण भी खसरा की तरह ही होते हैं। नाक से पानी टपकना, बुखार आना, शरीर पर लाल निशान बनना आदि। रूबेला खसरा से ज्यादा खतरनाक है। यदि कोई गर्भवती महिला उस से प्रभावित हो जाए तो पैदा होने वाला बच्चा मानसिक, शारीरिक रूप से कमजोर, अंधा, बहरा या फिर दिल की बीमारी से पीड़ित हो सकता है। एम आर टीका पहले से मौजूद है और डॉक्टर उसे 400 से 900 रुपये में देते हैं। डब्ल्यूएचओ के सदस्य देशों ने इसे नियमित टीकाकरण में शामिल किया है क्योंकि एक भी बच्चा छूट जाने पर यह वायरस फिर से अपना असर दिखा सकता है। भारत सरकार ने चरणबद्ध एकल टीका अभियान पूरा होने के बाद एम आर टीके को नियमित टीकाकरण में शामिल करने का फैसला किया है।

सौ प्रतिशत बच्चों को टीके दिए जाने के लिए सरकार का स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय, डब्ल्यूएचओ और यूनिसेफ मिलकर कोशिश कर रहे हैं। टीकाकरण अभियान को सफल बनाने के लिए यूनिसेफ रेडियो, टेलीविजन, प्रिंट मीडिया, सामुदायिक एवं धार्मिक नेताओं को इससे जोड़ने की कोशिश कर रहा है। अभियान की गति कम होने के दो तीन कारण सामने आए हैं। जानकारी की कमी, टीकाकरण की जरूरत और इसके फायदे से ना वाकफियत, माता पिता के पास समय का अभाव, टीके देने की जगह, दिन, तिथि का मालूम न होना और गलतफहमी या विरोधी प्रचार आदि। यूनिसेफ संदेशों के प्रसारण के लिए रेडियो पेशेवरो की मदद ले रही है। रेडियो पत्रकारों ने टीकाकरण से संबंधित अच्छे और प्रभावी संदेश बनाए हैं जैसे वादा भूल न जाना टीका जरूर लगवाना आदि। यूनिसेफ अच्छे संदेशों के लिए रेडियो पत्रकारों को रेडियो 4 चाइल्ड पुरस्कार से सम्मानित करता है। उसने प्रिंट मीडिया के पत्रकारों को स्वास्थ्य पर लिखने के लिए प्रशिक्षण देने की भी योजना बनाई है। पिछले दिनों यूनिसेफ ने आई आई एम सी के साथ तीन महीने का पायलट प्रोजेक्ट किया था। इसके तहत तीस छात्रों ने ट्रेनिंग ली। अप्रत्याशित तौर पर उन सभी को मीडिया में जगह मिल गई। यूनिसेफ इस कार्यक्रम को और आगे बढ़ाना चाहता है।

कहते हैं इलाज से बेहतर है बचाव। बीमारी से बचने के लिए तरह तरह की तदबीरें अपनाई जाती हैं। सवाल यह है कि छोटे बच्चों को बीमारियों से कैसे बचाया जाए। जन्म से पांच वर्षों के दौरान बच्चों के जीवन को सबसे अधिक खतरा होता है। भारत में निमोनिया, दस्त, टेटनस और पोषण की कमी से आम तौर पर बच्चों की मौतें होती हैं। वायरस और बैक्टरिया से होने वाली बीमारियां भी उनके लिए घातक मानी जाती हैं। बच्चों को बचाने के लिए दुनिया भर में आजमाया हुआ तरीका टीकाकरण है। जो कोस्ट इफेकटीव होने के साथ हर तरह से सुरक्षित है। यह आर्थिक नुकसान से भी माता पिता को बचाता है। मसलन अगर बच्चा बीमार हो जाए तो माता पिता की दिहाड़ी तो छूटती ही है साथ ही बच्चे को डॉक्टरों को दिखाने और दवा-दारू में बड़ी राशि खर्च हो जाती है। बच्चे देश का भविष्य हैं उनकी सुरक्षा सबकी जिम्मेदारी है। सरकार के साथ जनता को मिलकर स्वास्थ्य अभियान सफल बनाना होगा तभी हर बच्चा सुरक्षित और हर गोद आबाद रह पाएगी। स्वस्थ समाज से ही स्वस्थ देश का सपना पूरा हो सकता है।

Comments

Popular posts from this blog

The Prevailing Problem of Unpaid Women Labour In India

The Labour System Scenario The labour system in India constitutes the organised and unorganised sector. The organised sector comprises of the licensed organisations but it is the unorganised sector which covers around 94% of employment in India. These unorganised sectors include artisans, masons, farmers, weavers, farm labours and many others. And in this unorganised sector includes the contribution of both men and women where women labourers cover around 27% till date. The Gender Gap & Employment Issues In this 21 st century, there is no question of men and women working in each and every sector with equal fervour. Women are treated as equals and are given prominent positions if they are capable enough. But, this is not how it is fathomed in most regions of our nation. The problem of unpaid work among women has shown startling statistics even in this advancing world. It has been deducted that even after half of the work done by women population in India, they ...

5 Ways to fight plastic pollution

Plastic happens to be one of those invention that has been designed to make human life easier. Cheap, convenient and easily available they have permeated our lives to such an extent that we have become highly dependent on it. However this obsession with plastic has led to a serious threat to the environment. It is not just the human beings who are affected by this seemingly harmful material but plastic has become a cause of worry for the whole ecosystem. The discarded plastic that comes in the form of shopping bags, wrappers, plastic bottles and tubes etc. gets swallowed by various animals including cows, fish and birds because of being mistaken as food. Also, the huge amount of plastic that are thrown into the ocean further endangers the lives of sea animals. But that is not all. The main problem with plastic is that it is non-biodegradable and sticks around for a much longer time than any other form of trash. It further contains toxic chemicals which acts as a magnet for ot...

These top 10 NGOs in India are doing a fantastic job for humanity

You could be expressing compassion, sharing concerns or feeling sorry for the needy, but what are you contributing for helping out their lives? It is true that a single man cannot change the lives of millions. But, the initial thought matters the most. And this is how the journey began for most of the NGOs that are operating in the country with a flourish. Here is a list of top 10 NGOs in India who all have made their name and gained accolades through their stupendous work. 1. Help Age India Founded in 1978, this popular NGO in India works to save the rights of elder people. They act towards abolishing elder abuse and restoring their dignity, respect and also health. With mobile healthcare, Cataract surgery, Cancer Care and various other activities, Help Age India has grown to be a relief for lakhs of disadvantaged aged people all across the nation. They have been a winner for multiple times with their astounding work for the needy. 2. Nanhi Kali Initiated in 1996, the...